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अमरूद के औषधीय गुण | अमरूद के पत्ते के फायदे | अमरूद खाने के ये 6 फायदे आपको चौंकने पर मजबूर कर देंगे

 

अमरूद 

 


  परिचय

   भारत की जलवायु में अमरूद इतना घुल मिल गया है कि इसकी खेती यहाँ अत्यंत सफलतापूर्वक की जाती है। पता चलता है कि १७वीं शताब्दी में यह भारतवर्ष में लाया गया। अधिक सहिष्ण होने के कारण इसकी सफल खेती अनेक प्रकार की मिट्टी तथा जलवायु में की जा सकती है। जाड़े की ऋतु में यह इतना अधिक तथा सस्ता प्राप्त होता है कि लोग इसे निर्धन जनता का एक प्रमुख फल कहते हैं। यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक फल है। इसमें विटामिन "सी' अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त विटामिन "' तथा "बी' भी पाए जाते हैं। इसमें लोहा, चूना तथा फास्फोरस अच्छी मात्रा में होते हैं। अमरूद की जेली तथा बर्फी (चीज) बनाई जाती है। इसे डिब्बों में बंद करके सुरक्षित भी रखा जा सकता है।

 

   अमरूद का प्रसारण अधिकतर बीज द्वारा किया जाता है, परंतु अच्छी जातियों के गुणों को सुरक्षित रखने के लिए आम की भाँति भेटकलम (इनाचिंग) द्वारा नए पौधे तेयार करना सबसे अच्छी रीति हैं। बीज मार्च या जुलाई में बो देना चाहिए। वानस्पातिक प्रसारण के लिए सबसे उतम समय जुलाई अगस्त है। पौधे २० फुट की दूरी पर लगाए जाते हैं। अच्छी उपज के लिए दो सिंचाई जाड़े में तथा तीन सिंचाई गर्मी के दिनों में करनी चाहिए। गोबर की सड़ी हुई खाद या कंपोस्ट, १५ गाड़ी प्रति एकड़ देने से अत्यंत लाभ होता है। स्वस्थ तथा सुंदर आकर का पेड़ प्राप्त करने के लिए आरंभ से ही डालियों की उचित छँटाई (प्रूनिग) करनी चाहिए। पुरानी डालियों में जो नई डालियाँ निकलती हैं उन्हीं पर फूल और फल आते हैं। वर्षा ऋतु में अमरूद के पेड़ फूलते हैं और जाड़े में फल प्राप्त होते हैं। एक पेड़ लगभग ३० वर्ष तक भली भाँति फल देता है और प्रति पेड़ ५००-६०० फल प्राप्त होते हैं। कीड़े तथा रोग से वृक्ष को साधारणात: कोई विशेष हानि नहीं होती।

 

अमरूद खाने के फायदे

1.   अमरूद को काले नमक के साथ खाने से पाचन संबंधी समस्या दूर हो जाती है. पाचन क्रिया के लिए ये बेहतरीन फल है.

2.   अगर आपके बच्चों के पेट में कीड़े पड़ गए हैं तो अमरूद का सेवन करना उनके लिए फायदेमंद होगा.

3.   अमरूद की पत्त‍ियों को पीसकर उसका पेस्ट बनाकर आंखों के नीचे लगाने से काले घेरे और सूजन कम हो जाती है.

4.   अगर आपको कब्ज की समस्या है तो सुबह खाली पेट पका हुआ अमरूद खाना फायदेमंद रहता है.

 

 

 

अमरूद खाने के नुकसान

किसी भी चीज का अधिक मात्रा में सेवन नुकसानदायक ही होता है। अमरूद के भी कुछ नुकसान हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को अमरूद के अधिक सेवन से बचना चाहिए, क्योंकि इसमें ज्यादा फाइबर होता है और ऐसे में उन्हें डायरिया होने की संभावना रहती है। 

 

अमरूद के अधिक सेवन से शरीर में फाइबर की मात्रा में बढ़ोतरी होती है और ऐसे में इससे पाचन संबंधी समस्याएं, जैसे पेट में गैस, सूजन और मल त्याग में परिवर्तन आदि हो सकते हैं। हालांकि अगर आप फाइबर का अधिक सेवन करते हैं तो यह जरूरी है कि अधिक से अधिक तरल पदार्थों का भी सेवन करें। 

Guava in :

  • English: Common guava (कॉमन ग्वावा)
  • Hindi: अमरूद, जामफल (Jamfal)
  • Telugu: (Guava Meaning In Telugu) एत्ताजम (Ettajama), जमाकाया (Jamakaya In English)
  • Tamil : कोय्या (Koyya), सेगाप्पूगोया (Segapugoyya), सेगपु (Segapu), सिरोगोय्या (Sirogoyya), सेन्गोया (Sengoyya); , गोय्या (Goyya)
  • Marathi : जम्बा (Jamba)
  • Sanskrit : दृढबीजम्, मृदुफलम्, अमृतफलम्, पेरुक, बिही
  • Urdu : अमरूद (Amrud)
  • Odia :  बोजोजामो (Bojojamo); 
  • Asam :  मधुरियम (Madhuriam), मुहुरियम (Muhuriam); 
  • Kannada :  जामफल (Jamphal); 
  • Gujrati : जमरुड (Jamrud), जमरूख (Jamrukh);
  • Bengali : गोएच्ची (Goaachhi), पेयारा (Peyara), पियारा (Piyara);
  • Nepali :  अम्बा (Amba), अमबक (Ambak), अमूक (Amuk); 
  • Punjabi : अंजीरजाड (Anjirzard), अमरूद (Amrud); 
  • Malyalam :  कोय्या (Koyya), मलक्कापेरा (Malakkapera), पेरा (Pera); , टुपकेल (Tupkel)
  • Arabi : अमरूद (Amrud), जुडाकनेह (Judakaneh), कामशरणी (Kamsharni); 
  • Persian- अमरूद (Amrud)

 



भूमिका

अमरूद का फल वृक्षों की बागवानी मे एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी बहुउपयोगिता एवं पौष्टिकता को ध्यान मे रखते हुये लोग  इसे गरीबों का सेब कहते हैं। इसमे विटामिन सी प्रचुर मात्रा मे पाया जाता है। इससे जैम, जैली, नेक्टर आदि परिरक्षित पदार्थ तैयार किये जाते है।

इसकी सफल खेती अनेक प्रकार की मिट्टी तथा जलवायु में की जा सकती है। जाड़े की ऋतु मे यह इतना अधिक तथा सस्ता प्राप्त होता है कि लोग इसे गरीबों का सेब कहते हैं। यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक फल है। इसमें विटामिन सी अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त विटामिन ए तथा बी भी पाये जाते हैं। इसमें लोहा, चूना तथा फास्फोरस अच्छी मात्रा में होते हैं। अमरूद की जेली तथा बर्फी (चीज) बनायी जाती है। इसे डिब्बों में बंद करके सुरक्षित भी रखा जा सकता है।

 

जलवायु

अमरूद की सफल खेती उष्ण कटीबंधीय और उपोष्ण-कटीबंधीय जलवायु में सफलतापूर्वक की जा सकती है। उष्ण क्षेत्रों में तापमान व नमी के पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहने पर फल वर्ष भर लगते हैं। अधिक वर्षा वाले क्षेत्र 1245  सेमी से अधिक इसकी बागवानी के उपयुक्त नहीं है। छोटे पौधे पर पाले का असर होता है। जब कि पूर्ण विकसित पौधे 44 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान आसानी से सहन कर सकते हैं।

अमरूद के लिए गर्म तथा शुष्क जलवायु सबसे अधिक उपयुक्त है। यह गरमी तथा पाला दोनों सहन कर सकता है। केवल छोटे पौधे ही पाले से प्रभावित होते हैं। यह हर प्रकार की मिट्टी में उपजाया जा सकता है, परंतु बलुई दोमट इसके लिए आदर्श मिट्टी है। भारत में अमरूद की प्रसिद्ध किस्में इलाहाबादी सफेदा, लाल गूदेवाला, चित्तीदार, करेला, बेदाना तथा अमरूद सेब हैं।

अमरूद का प्रसारण अधिकतर बीज द्वारा किया जाता है, परंतु अच्छी जातियों के गुणों को सुरक्षित रखने के लिए आम की भाँति भेटकलम (इनाचिंग) द्वारा नए पौधे तेयार करना सबसे अच्छी रीति हैं। बीज मार्च या जुलाई में बो देना चाहिए। वानस्पातिक प्रसारण के लिए सबसे उतम समय जुलाई अगस्त है। पौधे 20  फुट की दूरी पर लगाए जाते हैं। अच्छी उपज के लिए दो सिंचाई जाड़े में तथा तीन सिंचाई गर्मी के दिनों में करनी चाहिए। गोबर की सड़ी हुई खाद या कंपोस्ट, 15 गाड़ी प्रति एकड़ देने से अत्यंत लाभ होता है। स्वस्थ तथा सुंदर आकर का पेड़ प्राप्त करने के लिए आरंभ से ही डालियों की उचित छँटाई (प्रूनिग) करनी चाहिए। पुरानी डालियों में जो नई डालियाँ निकलती हैं उन्हीं पर फूल और फल आते हैं। वर्षा ऋतु में अमरूद के पेड़ फूलते हैं और जाड़े में फल प्राप्त होते हैं। एक पेड़ लगभग 30 वर्ष तक भली भाँति फल देता है और प्रति पेड़ 500 - 600  फल प्राप्त होते हैं। कोड़े तथा रोग से वृक्ष को साधारणत: कोई विशेष हानि नहीं होती ।

 

 

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